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Tuesday, February 14, 2012

UDAIPUR: घसियार(Old Tample Nathdwara), ऐतिहासिक भूमि-"हल्दीघाटी".Part-3


UDAIPUR, दिनांक ३० जून २०११ और दिन गुरुवार था और ये हमारे सफ़र का चौथा और अंतिम दिन था। आज हमें जहाँ घूमने जाना हैं, उसका कार्यक्रम हम कल ही बना चुके थे और एक बस में टिकिट भी आरक्षित भी करवा दी थी। लगभग सुबह ६ बजे के आसपास हम लोग नींद से उठ गए और कुछ समय पश्चात, अपने सुबह के जरुरी काम निपटाकर घूमने जाने के लिए तैयार हो गए। कमरे की खिड़की से उदय पोल, केंद्रीय बस अड्डा और पीछे जाती हुई रेलवे लाइन का सुन्दर नज़ारा दिख आ रहा था।
उदय पोल, केंद्रीय बस अड्डा और पीछे जाती हुई रेलवे लाइन का सुन्दर नज़ारा।
अपने आगे के सफ़र पर जाने से पहले हमने अपना सारा सामान इकठ्ठा किया और अपने बैगो में पैक कर दिया, क्योकि हमने इस होटल में कमरा एक दिन के लिए ही किराये पर लिया था और अब हमें इसे सुबह १० बजे से पहले खाली भी करना था।

रात को उदयपुर में हमारा रुकने का कोई कार्यक्रम नहीं था, क्योकि आज रात को हमें आगरा के लिए वापिस जाना था और हमारा उदयपुर-ग्वालियर सुपरफास्ट एक्सप्रेस रेल (रेलगाड़ी संख्या १२९६६ और उदयपुर से गाड़ी चलने का समय रात १० बजकर २० मिनिट पर) से टिकिटो का अग्रिम आरक्षण भी था।

होटल की छत से दीखता सिटी पैलेस ।


होटल का कमरा खाली करने के पश्चात हमने होटल के ही अमानत कक्ष में अपना सामान जमा कर दिया। सुबह का नाश्ता हमने होटल सवेरा के ही रेस्तरा में चाय और आलू के परांठे से किया, क्योकि सुबह-सुबह इसके सिवाय और कुछ भी खाने के तैयार नहीं था। नाश्ता करने के पश्चात होटल के एक आदमी ने हमें उदय पोल के पास एक ट्रेवल एजेंट की दुकान पर हमको छोड़ दिया, जहाँ से हमको बस में बैठना था। लगभग आधा घंटा प्रतीक्षा करने के बाद एक मिनी बस (2x2) आई, और उसमे बैठने के पश्चात हम अपनी आज की यात्रा पर चल पड़े। बस चालक ने उदयपुर में और भी ट्रेवल एजेंट से आरक्षित की हुई सवारियों को बस में बैठ्या। सवारियों से भर जाने के बाद बस राष्ट्रीय राजमार्ग ७६ पर स्थित घसियार मंदिर की ओर चल दी। बस में कोई गाइड नहीं था, पर मजे की बात हमें यह लगी की बस का चालक ही बस का गाइड था, जब उसे हम लोगो को किसी स्थान के बारे बताना होता था, वो बस रोककर अपने केबिन के खडकी पर खड़ा होकर उस स्थान की जानकारी भी दे रहा था। चालक ने गाइड शुल्क के रूप में प्रति व्यक्ति रूपये १० के हिसाब से यात्रियों से जमा भी किये। घसियार मंदिर की दूरी उदयपुर से लगभग १७ किलोमीटर आसपास हैं और हम लोग लगभग घंटे भर के अन्दर वहा पहुच गए

घसियार श्री नाथजी मंदिर: राष्ट्रीय राजमार्ग ७६ सड़क के किनारे शांतिमय व हरेभरे वातावरण में गोकुंदा पहाड़ी पर स्थित हैं। यह मंदिर एक हवेली शक्ल में हैं, और इसकी सभी की दीवारे सफ़ेद रंग से पुती हुई हैं। घसियार नाथद्वारा मंदिर श्री गोवर्धन धरण प्रभु श्रीनाथजी का सुन्दर मंदिर हैं और मंदिर के अन्दर तक जाने के लिए सीढियों बनी हुई हैं। मंदिर के मुख्य दरवाज़ा सूरज पोल पर दोनों तरफ की दीवारों पर हाथी व अन्दर की अन्य दो दरवाजो पर घोड़े और सिंह की की सुन्दर चित्रकारी से की हुई  हैं।

घसियार मंदिर में घोड़े की सुन्दर चित्रकारी से सजा द्वार।

यह मंदिर श्री गोवर्धन धरण प्रभु श्रीनाथजी (नाथद्वारा) का पूर्व निवास निवास स्थल था,  इस मंदिर के गर्भ गृह में भगवान श्री नाथ जी की प्रतिरूप एक बहुत बड़ी तश्वीर लगी हुई, जिसकी पूजा सेवा यहाँ पर नाथद्वारा मदिर के द्वारा नियुक्त पुजारी के द्वारा होती हैं। बहुत समय पहले पिंडारियो ने नाथद्वारा पर आक्रमण किया था, नाथद्वारा में काफी लोग मारे गए और मंदिर की संपत्ति को उनके द्वारा लूटा जाने लगा था और इससे भगवान श्री नाथ प्रभु जी पूजा और सेवा में बिघ्न पड़ने लगा, तब नाथद्वारा मंदिर के गुसाई जी ने प्रभु जी कही अन्यंत ले जाने का विचार बनाया और घसियार क्षेत्र के वियाबान और दुर्गम स्थान पर किलेनुमा मंदिर का निर्माण कराया और घसियार मंदिर का निर्माण पूरा होने तक पहले प्रभु जी को उदयपुर ले जाकर कुछ महीनो तक वहां एक मंदिर में उनकी सेवा व पूजा की, उसके बाद मंदिर निर्माण पूरा हो जाने के बाद प्रभु श्री नाथ जी को घसियार मंदिर ले आये।  कई वर्षो बाद मंदिर के गुसाई जी को लगा की घसियार का हवा, पानी प्रभु श्री नाथ जी सेवा लायक नहीं हैं,  और अब नाथद्वारा में भी शांति और खुशहाली का वातावरण हो गया था, तो प्रभु जी कुछ महीने उदयपुर और उसके बाद कुछ वर्ष घसियार वास करने के पश्चात वापिस नाथद्वारा ले गए और वही पर प्रभु श्री नाथ जी सेवा, पूजा होने लगी। 
हिंदी में घसियार मंदिर के इतिहास को और अधिक जानने के लिए इस लिंक पर जाये - घसियार 
(In English, For More Information about History of Ghasiyar Temple, follow this link - Ghasiyar-O.T. Nathdawara)

जय हो गोबर्धनधारी  प्रभु श्रीनाथ जी की ।
घसियार मंदिर में सिंह की सुन्दर चित्रकारी सजा सिंह पोल।

घसियार मंदिर में भगवान श्री नाथ जी फोटो खीचना प्रतिबंधित था, इसलिए मंदिर के अन्दर के फोटो हमने नहीं लिए। मंदिर का वातावरण बहुत शांत और सुरम्य था और मंदिर के पीछे हरा भरा जंगल भी नज़र आ रहा था। घसियार प्रभु श्री नाथ जी के दर्शन करने के पश्चात हम लोग बस में बैठकर कर कुछ समय बाद हल्दीघाटी  हैं।

हल्दीघाटी किसी स्थान या कस्बे का नाम नहीं हैं, यह अरावली पर्वतमाला में स्थित एक उबड़-खाबड़ वीरान पहाड़ी दर्रा (पहाड़ी रास्ता) व एक घाटी हैं, जो राजसमन्द और पाली जिलो को आपस में जोड़ता हैं। हल्दीघाटी उदयपुर से लगभग ४4 किलोमीटर, नाथद्वारा से १७ किलोमीटर और भगवन शिव के मंदिर इकलिंग जी लगभग १९ किलोमीटर दूर स्थित हैं।

उदयपुर से जाते समय हल्दीघाटी क्षेत्र में प्रवेश करते ही सबसे पहला स्थान वरवाषण माता मंदिर का आता हैं, जो हल्दीघाटी की पहाडियों में स्थित प्राचीन देवी मंदिर हैं। इस मंदिर में प्रवेश केवल झुककर ही किया जा सकता हैं, क्योकि मंदिर के मुख्य द्वार के बीच संगमरमर के पत्थर का टुकड़ा आड़ी स्थिति में लगा हुआ हैं। गाइड ने हमें बताया की " हल्दीघाटी युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप और उनके सेना यहाँ पर वरवाषण माता से  आशीर्वाद लेने व उनकी पूजा करने आया करते थे और यहाँ की मान्यता हैं इस मंदिर में मागी गयी से मुरादे हमेशा पूरी होती हैं।" मंदिर परिसर साफ़ सुधरा और बिलकुल शांत वातावरण में था। दर्शन करने के पश्चात हमने देखा की मंदिर के द्वार के बिलकुल सामने सड़क के पार एक गोल, भरी भरकम शिला (पत्थर) रखा हुआ था। पूछने पर गाइड ने हमें बताया की "  पुरानी मान्यताओ के अनुसार जो व्यक्ति इस गोल शिला को जमीन से अपने हाथो के सहायता से उठा देगा, उसकी इस मंदिर में मांगी गयी मुराद पूरी हो जाती हैं।" हम लोगो ने उस शिला को उठाने की कोई कोशिश नहीं की, केवल उस शिला का स्पर्श किया।

कुछ समय मंदिर के आस पास बिताने के पश्चात हम लोग बस में बैठकर हल्दीघाटी स्थित महाराणा प्रताप संग्रहालय की और चल दिए।

वरवाषण माता के मंदिर के अन्दर का द्रश्य।
वरवाषण माता के मंदिर के बहार गोल शिला (पत्थर)।

वैसे हल्दीघाटी का नाम तो सभी ने सुना ही होगा। हल्दीघाटी नाम आते ही युद्ध भूमि का नज़ारा और इतिहास सामने आ जाता हैं। बचपन से हम लोग हल्दीघाटी में राजपूत योद्धा महाराणा प्रताप और मुग़ल बादशाह अकबर का युद्ध, राजपूतो वीरता, महाराणा प्रताप जी का युद्ध कौशल और उनके घोड़े की वफ़ादारी आदि के बारे कहानियाँ सुनते और उनका इतिहास पढ़ते आ रहे हैं। हल्दीघाटी के कण-कण में इतिहास समाया हुआ हैं।  हल्दीघाटी की मिटटी व पहाड़ी देखने में तो लाल रंग की पर यदि इसे खुरचा जाये तो अन्दर से हल्दी की तरह पीले रंग की नज़र आती हैं, हल्दी की तरह पीली मिटटी होने के कारण इस घाटी का नाम हल्दीघाटी पड़ा। इस घाटी की मिटटी गुलाब के फूलो के उत्पादन के अनुकूल होने कारण यहाँ पर गुलाब की खेती बहुतायत से होती हैं और यहाँ गुलाब के उत्पाद जैसे गुलाब जल, गुलुकंद इत्यादी अच्छी किस्म के मिल जाते हैं।

इतिहास में हल्दीघाटी का युद्ध 1576 को मेवाड़ वीर राजपूत महाराणा प्रताप व दिल्ली मुग़ल बादशाह अकबर बीच मुगलों के द्वारा मेवाड़ कब्ज़ा से बचने के लेखर हुआ था। इधर मुगलों की सेना में सिपाहियों, घोड़े व हाथियों की संख्या बहुत अधिक थी, और राजपूतो की सेना में हाथी नहीं थे, सिर्फ घोड़े थे। महाराणा प्रताप के वफादर घोड़े चेतक को मुगलों के हाथियों के बीच युद्ध करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। इस परेशानी से बचने के लिए राजपूत महाराणा प्रताप ने मुगले के हाथियों को भ्रम में डालने के लिये चेतक के मुंह पर हाथी की सूंड की तरह दिखने वाला नकली मुखोटा लगाया दिया था। युद्ध में मुगल सेनापति मानसिंह एक हाथी के हौदे में बैठकर युद्ध कर रहा था तो एक मौके पर चेतक ने ऊंची छलांग लगाकर हाथी के सिर पर पैर रख दिए और राजपूत महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर भाले के द्वारा जोर से प्रहार किया तो मानसिंह उस प्रहार से बचने के लिए अपने हौदे में छुप गया और उस प्रहार से बच गया। लेकिन मानसिंह के हाथी की सूंड में बंधी तलवार ने चेतक का एक पैर बुरी तरह कट दिया, जिससे चेतक गंभीर रूप से घायल हो गया। महाराणा प्रताप को संकट में घिर गए, ये देखकर उनके एक मंत्री झालामन ने मुगलों भ्रमित करने के लिए प्रताप का मुकुट अपने सिर पर रख लिया और मुगलों से युद्ध करने लगे। मुगलों सेना ने झालामन को प्रताप समझ कर उन पर प्रहार किया, जिससे झालामन वीरगति को प्राप्त हो गए और इस बीच महाराणा   प्रताप का घायल घोडा चेतक उन्हें लेकर सुरक्षित निकल गया और एक बड़े नाले को पार करते समय वफादार चेतक ने अपने स्वामी के जान बचने के बाद वही दम तोड़ दिया।

महाराणा प्रताप संग्रहालय: संग्रहालय पहुचकर गाइड में बस के सभी यात्रियों को एकत्रित करके एक गुट बनाया और उस गुट का नाम दिया "फ़तेहसागर लेक"। ताकि बस के लोग सग्रहालय देखते समय इधर उधर न हो जाये और गुट का नाम पुकारने पर एक जगह आ जाये। महाराणा प्रताप संग्रहालय बड़े क्षेत्र में फैला हुआ और सुन्दर किलेनुमा परिकोटे से घिरा हुआ हैं। संग्रहालय में प्रवेश करने के लिए ३० रुपये प्रति व्यक्ति और कैमरे का प्रवेश शुल्क अलग से देना होता हैं।

संग्रहालय में हल्दीघाटी युद्ध की मुगलों व राजपूतो की मूर्तियों की झाकी से सजीव प्रदर्शन, मेवाड़ किलो का माडल, मेवाड़ का इतिहास, युद्ध में प्रयोग होने वाले अस्त्र-शस्त्र, राजस्थानी चित्रकला, राजस्थान की लोक कला, चलन व संस्कृतिक विरासत की सजीव झाकिया, हल्दीघाटी का माडल नकशा, चलचित्र के माध्यम से हल्दीघाटी के इतिहास का प्रदर्शन, गुलाब से गुलाबजल बनाने का पारम्परिक प्रदर्शन आदि कुछ देखा जा सकता था।

हमने भी संग्रहालय घूमते हुए कुछ सुन्दर फोटो अपने कैमरे से खिची। नीचे दिए चित्रों के माध्यम से आप भी भी देख सकते हैं।

किले व महल जैसा  दिखाई देता हल्दीघाटी स्थित महाराणा प्रताप संग्राहलय 

महाराणा प्रताप संग्रहालय में मानसिंह के हाथी के मस्तक पर चेतक के पैर रखे मूर्ति।

संग्रहालय में महाराणा प्रताप और उनके वफादार घोड़े चेतक की मूर्ति।

संग्रहालय में कुम्भलगढ़ किले का एक नक्शा ।


संग्रहालय में मूर्ति कला से दर्शाया गया राजस्थान की संस्कृति ।

आराम करने के लिए संग्रहालय में बनाया गया सुन्दर व  संस्कृतिक बैठक।

संग्रहालय में ऊंट गाड़ी का प्रदर्शन।

महाराणा प्रताप संग्रहालय घूमने के लिए बहुत ही अच्छी व उत्तम जगह हैं। बिना संग्रहालय घूमे हल्दीघाटी की यात्रा अधूरी मानी जाती हैं। अब इस लेख को यही समाप्त करते हैं, अगले अंतिम लेख में आपको संग्रहालय की कुछ और बाते, हल्दीघाटी के बची हुई और एतिहासिक जगह, प्रभु श्रीनाथ का धाम नाथद्वारा और एकलिंग जी महादेव के बारे में बताऊंगा । 
धन्यवाद!
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3 comments:

  1. .उदयपुर और नाथद्वारा तो मेने देखा हैं पर हल्दीघाटी जा नहीं सकी थी ...नीरज ने वहाँ की सैर करवाई थी ..अब आपने करवाई हैं ,,बहुत शुक्रिया ...

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    Replies
    1. अगली बार आप हल्दीघाटी जरुर जायेइगा ...बहुत ही अच्छी जगह हैं |
      टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया .....!

      Delete

  2. जब हल्दीघाटी पहुंचते हैं तो मन में वीर रास का भाव स्वतः ही जाग जाता है ! अगर उदयपुर गए हैं और हल्दीघाटी नही गए तब मैं कहूँगा कि यात्रा अधूरी रही ! बहुत ही खूबसूरत जगह है ! मुझे मुख्या दरवाजे के पास का मंदिर बहुत पसंद आया था और मान सिंह को भाले से प्रहार करते महाराणा की मूर्ति बहुत सुन्दर लगी ! यहां सामने दो हाथी भी हैं , वो नही दिखाए आपने ?

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